Sunday, June 20, 2010

सिमसा वृक्ष के पत्ते और बुद्ध का चितंन

Simsapa leaves

एक बार गौतम बुद्ध कौशम्बी मे सिमसा जगंल मे  विहार कर रहे थे । एक दिन उन्होने जंगल मे पेडॊं के कुछ पत्तों  को अपने हाथ मे लेकर भिक्षुओं से पूछा , “ क्या लगता है भिक्षुओं , मैने  हाथ मे जो पत्ते लिये हैं वह  या जंगल मे पेडॊं पर लगे पत्ते संख्या मे अधिक हैं । “

भिक्षुओं ने कहा , “ जाहिर हैं जो पत्ते जंगल मे पेडॊं पर लगे हैं वही संख्या मे आपके हाथ मे रखे पत्तों से अधिक हैं “

इसी तरह  भिक्षुओं ऐसी अनगिनत  चीजे हैं जिन्का प्रत्यक्ष ज्ञान के साथ संबध हैं लेकिन उनको मै तुम लोगों को  नही सिखाता क्योंकि उनका संबध लक्ष्य के साथ नही जुडा है , न ही वह चितंन का नेतूत्व करती हैं , न ही विराग को दूर करती है, न आत्मजागरुकता उत्पन्न करती है और  न ही मन को शांत करती है ।

इसलिये भिक्षुओं तुम्हारा कर्तव्य तुम्हारे चिंतन मे है ..उस दु:ख की उत्पत्ति …दु:ख की समाप्ति और उस अभ्यास मे है जो इस जीवन मे तनाव या दु:ख को दूर कर सकती है । और यह अभ्यास इस जीवन के लक्ष्य से जुडा है , निराशा और विराग को  दूर करता हैं और मन को शांत करता है ।

संयुत्त निकाय 56.31

( हिन्दी मे ’ The Simsapa Leaves-Simsapa Sutta ’ से अनुवादित )

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