Tuesday, April 16, 2013

जय मंगल गाथा


भारत की महाबोधि सोसाइटी द्धारा गाई गई मूल पालि मे ‘ जय मंगल गाथा ’ एक दुर्लभ रिकॉर्डिंग है जिसे मैने कुछ दिन पहले  यू ट्यूब पर देखी । पालि  एवं अग्रेजी में इसका अनुवाद कई साइट पर मिल सकता है लेकिन हिन्दी में इसका अनुवाद कही नही मिला । थोडा प्रयास करने के बाद इसका हिन्दी अनुवाद श्री राजेश चन्द्रा जी के पास मिला और  उनका  आभारी रहूगाँ जिन्होनें कल इस गाथा के स्कैन किये हुये पेज मुझे मेल पर भेजे ।
दो वजहों से इस गाथा मे मेरी रुचि बढी । अगर ऊपरी सतही रुप मे देखें तो यह गाथा जैसे आम धर्मों  जैसी ही अपने-२ देवदूतों का  गुणगान करती प्रतीत होती  है लेकिन इन सभी आठ गाथाओं को गौर से पढें तो यह सिर्फ़ शाब्दिक गुणगान कम बल्कि इन्सान की मूल कमजोरियों और नकारात्मक भावों पर  सत्य की जीत को प्रतिनिधित्व  करता है । उदाहरण के लिये मार , नागराज, चिन्चा , बक   इन्सान के नकारात्मक मन को दर्शाते हैं ।
त्रिपटक में इस मंत्र का अपना विशेष स्थान है और यह मंत्र मन मे उठने वाले नकारात्मक विचारों पर बुद्ध्त्व की जीत का सांकेतिक रुप है । यह आठ विजय हैं :
१, भगवान्‌ बुद्ध की मार पर विजय
२.आलवक नामक यक्ष पर विजय
३. नालगिरि  गजराज  पर विजय
४. अंगुलिमाल पर विजय
५. भगवान्‌ बुद्ध को अपशब्द और बदनाम करनी वाली चिन्चा के नापाक इरादों  पर विजय
६. अभिमानी और अंहकारी ब्राहम्ण सच्चक पर विजय
७. नन्दोपण्द नामक भुजगं पर विजय
८.  ब्रह्मा बक के मिथ्याग्रस्त विचारों  पर विजय
मूल पालि में महामंगल गाथा :
बाहुं सहस्समभिनिम्मितसायुधन्त,गिरिमेखलं उदितघोरससेनमारं।
दानादि धम्मविधिना जितवा मुनिन्दो, त तेजसा भवतु ते जयमंगलानि।१।
मारातिरेकमभियुज्झित-सब्बरत्तिं,घोरं पनालवकमक्खमथद्धयक्ख।
खान्ति सुदन्तविधिना जितवा मुनिन्दो, तं तेजसा भवतु ते जयमंगलानि।२।

नालागिरि गजवरं अतिमत्तभूतं,दावग्गिचक्कमसनीव सुदारूणन्तं।
मेत्तम्बुसेकविधिना जितवा मुनिन्दो, तं तेजसा भवुत ते जयमंगलानि।३।
उक्खित्तखग्ग-मतिहत्थ सुदारूणन्त,धावं तियोजनपथं-गुलिमालवन्त।
इद्धिभिसंखतमनो जितवा मुनिन्दो, तं तेजसा भवतु ते जयमंगलानि।४

कत्वान कटठमुदरं इव गब्भिनीया, चिञ्चाय दुट्ठवंचन जनकायमज्झे।
सन्तेन सोमविधिना जितवा मुनिन्दो, तं तेजसा भवतु ते जयमंगलानि।५।

सच्चं विहाय मतिसच्चकवादकेतुं, वादाभिरोपितमनं अतिअन्धभूतं।।
पञ्ञापदीपजलिलो जितवा मुनिन्दो, तं तेजसा भवतु ते जयमंगलानि।६।

नन्दोवनन्दभुजगं विवुधं महिद्धि, पुत्तेन थेरभुजगेन दमापयन्तो।
इद्धुपधेसविधिना जितवा मुनिन्दो, तं तेजसा भवुत ते जयमंगलानि ।७।

दुग्गाहदिठ्टिभुजगेन सुदठ्टहत्थं, ब्रम्ह विसुद्धि जुतिमिद्धि बकाभिधानं।
ञाणागदेन विधिना जितवा मुनिन्दो, तं तेजसा भवतु ते जयमंगलानि।८।

एतापि बुद्ध जयमंगल अठ्ट गाथा, यो वाचको दिनदे सरते मतन्दी
हित्वान नेकाविविधानि चुपद्दवानि, मोक्खं सुंखं अधिगमेय्य नरो सपञ्ञो।९।

महामंगल गाथा का हिन्दी अनुवाद :
गिरीमेखला नामक गजराज पर सवार शस्त्र-सज्जित सह्स्त्र –भुजाधारी मार को उसकी भीषण सेना सहित जिन मुनीन्द्र ( भगवान्‌ बुद्ध ) ने अपनी दान पारिमाताओं के बल पर जीत लिया , उनके तेज प्रताप से तुम्हारी जय हो ! तुम्हारा मंगल हो ! ।१।
मार से भी बढ चढ कर सारी रात युद्ध करने वाले , अत्यन्त दुर्घर्ष और कठोर ह्र्दय आलवक नामक यक्ष को जिन मुनीन्द्र ने अपनी शांति और संयम के बल से जीत लिया , उनके तेज प्रताप से तुम्हारी जय हो ! तुम्हारा मंगल हो ! ।२।
दावाग्नि – चक्र अथवा विधुत की भांति अत्यन्तं दारुण और विपुल मदमत्त नालागिरि गजराज को जिन मुनीन्द्र ( भगवान्‌ बुद्ध ) ने अपने मैत्री रुपी जल की वर्षॊं से जीत लिया , उनके तेज प्रताप से तुम्हारी जय हो ! तुम्हारा मंगल हो ! ।३।
हाथ मे तलवार उठा कर योजन तक दौडने वाले अत्यन्तं भयावह अगुंलिमाल को जिन मुनीन्द्र ( भगवान्‌ बुद्ध ) ने अपने ऋद्धि बल से जीत लिया , उनके तेज प्रताप से तुम्हारी जय हो ! तुम्हारा मंगल हो ! ।४।
पेट पर काठ बाँधकर गर्भिणी का स्वांग करने वाली चिंचा के द्वारा जनता के मध्य कहे गये अपशब्दों को जिन मुनीन्द्र ( भगवान्‌ बुद्ध ) ने अपने शांत और सौम्य बल से जीत लिया , उनके तेज प्रताप से तुम्हारी जय हो ! तुम्हारा मंगल हो ! ।५।
सत्य विमुख , असत्यवाद के पोषक, अभिमानी , वादविवाद परायण औए अंहकार से अत्यन्तं अंधे हुये सच्चक नामक परिव्राजक को जिन मुनीन्द्र ( भगवान्‌ बुद्ध ) ने प्रज्ञा प्रदीप जलाकर जीत लिया , उनके तेज प्रताप से तुम्हारी जय हो ! तुम्हारा मंगल हो !! ।६।
विविध प्रकार की महान ऋद्धियों से संपन्न नन्दोपनंद नामक भुजंग को अपने पुत्र ( शिष्य) महामौद्रल्लायन स्थविर द्वारा अपनी ऋद्धि-शक्ति और उपदेश के बल से जिन मुनीन्द्र ( भगवान्‌ बुद्ध ) ने जीत लिया , उनके तेज प्रताप से तुम्हारी जय हो ! तुम्हारा मंगल हो !! ।७।
मिथ्यादृष्टि रुपी भयानक सर्प द्वारा डसे गये , शुद्ध ज्योतिर्मय ऋद्धि-संपन्न बक ब्रह्मा को जिन मुनीन्द्र ( भगवान्‌ बुद्ध ) ने ज्ञान की वाणी से जीत लिया , उनके तेज प्रताप से तुम्हारी जय हो ! तुम्हारा मंगल हो !! ।८।
९. जो बुद्दिमान प्राणी  भगवान्‌ बुद्ध की इन आठ विजय चक्रों को प्रतिदिन कंठस्थ और याद करते हैं , वह जीवन मे आने वाली विपत्तियों से दूर भी रहते हैं और निर्वाण को प्राप्त करते हैं । ।९।



English translation:
1. Creating thousand hands, with weapons armed was Mara seated on the trumpeting, ferocious elephant Girimekhala.
Him, together with his army, did the Lord of Sages subdue by means of generosity and other virtues. By its grace may joyous victory be thine.
2. More violent than Mara were the indocile, obstinate demon Alavaka, who battled with the Buddha throughout the whole night. Him, did the Lord of Sages subdue by means of His patience and self-control. By its grace may joyous victory be thine.
3. Nalagiri, the mighty elephant, highly intoxicated was raging like a forest-fire and was terrible as thunder-bolt.
Sprinkling the waters of loving-kindness, this ferocious Beast, did the Lord of Sages subdue. By its grace may joyous victory be thine.
4. With uplifted sword, for a distance of three leagues, did wicked Angulimala run. The Lord of Sages subdued him by
His psychic powers. By its grace may joyous victory be thine.
5. Her belly bound with faggots, to simulate the bigness of pregnancy, Cinca, with harsh words made foul accusation in the midst of an assemblage. Her, did the Lord ofSages subdue by His serene and peaceful bearing. By its grace may Joyous victory be thine.
6.Haughty Saccaka, who ignored truth, was like a banner in controversy, and his vision was blinded by his own disputation. Lighting the lamp of wisdom, Him did the Lord of Sages subdue. By its grace may Joyous victory be thine.
7.The wise and powerful serpent Nandopananda, the Noble Sage caused to be subdued by the psychic power of his disciple son (Thero Moggallana). By its grace may joyous victory be thine.
8. The pure, radiant, majestic Brahma, named Baka, whose hand was grievously bitten by the snake of tenacious false-views, the Lord of Sages cure with His medicine of wisdom.
By its grace may joyous victory be thine.
9.The wise one, who daily recites and earnestly remembers these eight verses of joyous victory of the Budhha, will get
rid of various misfortunes and gain the bliss of Nirvana.

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